नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जब लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली आए तो यहां ज्यादा घुलमिल नहीं पाए. किसी से कोई खास पहचान भी नहीं थी. हां, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर लगातार उनके संपर्क में रहते थे. नीतीश कुमार को जब केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया तो उन्हें दिल्ली के चाणक्यपुरी में तीन मूर्ती भवन के करीब सर्कुलर रोड पर घर मिला. उस लेन में चार-पांच बंगले और थे.
उदय कांत, राजकमल से प्रकाशित अपनी किताब ”नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नजर से” में लिखते हैं कि नीतीश कुमार अपने पड़ोसियों से भी अपरिचित थे. एक दिन छुट्टी थी. अचानक उनके एक कर्मचारी ने आकर कहा कि चार नंबर कोठी में रहने वाले साहब आपसे मिलना चाहते हैं और समय मांग रहे हैं. नीतीश कुमार पहले तो सोच में पड़ गए. क्योंकि बिहार में पड़ोसियों के यहां जाने के लिए किसी औपचारिक अनुमति या अपॉइंटमेंट की जरूरत पड़ती. नीतीश (Nitish Kumar) के बंगले के दरवाजे हमेशा सबके लिए खुले रहते थे.
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कौन था 4 नंबर कोठी वाला?
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपने कर्मचारी से कहा कि इसमें पूछने की क्या जरूरत है. वह जब भी आना चाहें, आ सकते हैं. हमेशा स्वागत है! उदय कांत लिखते हैं कि अचानक नीतीश के मन मे ख्याल आया कि पूछ लिया जाए कि आखिर चार नंबर कोठी वाले हैं कौन? इस सवाल का जो जवाब मिला वह सुन नीतीश कुमार हक्का-बक्का रह गए. पता चला कि चार नंबर की कोठी में कोई और नहीं बल्कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति सरदार ज्ञानी जैल सिंह (Giani Zail Singh) रहते हैं और उन्होंने ही नीतीश कुमार से मिलने की इच्छा जाहिर की थी.
नीतीश कुमार को क्या आइडिया दिया था?
जब कर्मचारी ने ज्ञानी जैल सिंह का नाम लिया तो नीतीश के पैरों तले जमीन खिसक गई. उन्होंने कहा कि मैं खुद जाकर उनसे मिलना चाहता हूं और वह भी फौरन. उदय कांत लिखते हैं कि नीतीश को जैसे ही अनुमति मिली, वह तुरंत ज्ञानी जैल सिंह से मिलने पहुंच गए. दोनों बहुत स्नेह पूर्वक मिले. उस मुलाकात में ज्ञानी जैल सिंह ने नीतीश कुमार से जाति जनगणना का कानून लागू करने के लिए संसद में पूरा जोर लगाकर प्रयास करने को कहा. इससे पहले लोहिया के अलावा किसी और राष्ट्रीय स्तर के नेता ने जातिगत जनगणना के पक्ष में इस तरह की पैरवी नहीं की थी.
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क्यों PMO के आसपास टहला करते थे?
उदय कांत अपनी किताब में नीतीश (Nitish Kumar) के सांसद बनने के बाद का एक और दिलचस्प किस्सा लिखते हैं. यह साल 1989 के लोकसभा चुनाव का है. इस चुनाव में नीतीश और लालू दोनों को जीत मिली. उस वक्त दोनों दिल्ली की राजनीति में अपनी पैठ और पहचान बनाने की जद्दोजहद में लगे.
जब दोनों दिल्ली आए तो नया कुर्ता-पायजामा पहनकर रायसीना हिल स्थित ‘साउथ ब्लॉक’ (प्रधानमंत्री कार्यालय) का चक्कर काटने लगे. उन्हें उम्मीद थी कि उनका सफेद कुर्ता-पायजामा देखकर कोई उन्हें मंत्री पद ऑफर कर देगा. खुद लालू यादव ने भी अपनी जीवनी में इस किस्से का जिक्र किया है.
बकौल लालू, 1989 का चुनाव जीतने के बाद मैंने और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मंत्री बनने का प्रयास किया. अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए अपना सबसे अच्छा कुर्ता-पायजामा पहनकर पीएमओ के आसपास घूमा करते थे, लेकिन बात बनी नहीं. हालांकि नीतीश कुमार इस बात से इनकार करते हैं और कहते हैं कि उस वक्त उनकी मंशा केंद्र में मंत्री बनने की थी ही नहीं. हां.. कभी-कभार लालू यादव के साथ बड़े लोगों से मिलने जरूर चले जाया करते थे.
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FIRST PUBLISHED : January 27, 2024, 15:53 IST